BA Semester-1 Philosophy - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2633
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र

प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।

उत्तर -

भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताएँ
(General Features or Common Characteristics of Indian Philosophy)

भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं का अध्ययन करने के लिए भारत के दार्शनिक सम्प्रदायों की चर्चा करना आवश्यक है। दार्शनिक सम्प्रदायों को सामान्यतः आस्तिक और नास्तिक दो वर्गों में विभाजित किया गया है। वेद को प्रामाणिक मानने वाले दर्शन को आस्तिक तथा वेद को अप्रामाणिक मानने वाले दर्शन को 'नास्तिक' कहा जाता है। आस्तिक दर्शन छः हैं जिन्हें न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा और वेदान्त कहा जाता है। इसके विपरीत चार्वाक बौद्ध और जैन दर्शनों को 'नास्तिक दर्शन' के वर्ग में रखा जाता है। इन दर्शनों में अत्यधिक आपसी विभिन्नता है। किन्तु कुछ दार्शनिक मतभेदों के बाद भी इन दर्शनों में सर्वनिष्ठता का पुट है। कुछ सिद्धान्तों की प्रामाणिकता प्रत्येक दर्शन में उपलब्ध है। इस साम्य का कारण प्रत्येक दर्शन का विकास एक ही भूमि भारत में हुआ कहा जा सकता है। एक ही देश में पनपने के कारण इन दर्शनों पर भारतीय प्रतिभा, निष्ठा और संस्कृति की छाप अमिट रूप से पड़ गई है। इस प्रकार भारत के विभिन्न दर्शनों में जो साम्य दिखाई पड़ते हैं उन्हें "भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताएँ" कहा जाता है। ये विशेषताएँ भारतीय विचारधारा के स्वरूप को पूर्णतः प्रकाशित करने में समर्थ हैं। इसलिए इन विशेषताओं का भारतीय दर्शन में अत्यधिक महत्व है। अब हम भारतीय दर्शन की एक-एक विशेषताओं का उल्लेख करेंगे।

1. जीवन के प्रति निश्चित दृष्टिकोण- पश्चिम विचारकों के लिए दर्शन एक मानसिक व्यायाम मात्र है। वहाँ दर्शन की उत्पत्ति मानव जिज्ञासा की शांति के लिए होती है। परन्तु भारतीय दर्शन को केवल मानसिक कसरत नहीं कहा जा सकता। इसका व्यावहारिक पक्ष इसके सैद्धांतिक पक्ष से अधिक सबल है। यह जीवन के अत्यन्त समीप है। बुद्धि को संतुष्ट करना ही इसका लक्ष्य नहीं है, बल्कि ज्ञान के प्रकाश में जीवन को सुव्यवस्थित बनाना इसका मुख्य उद्देश्य है। जीवन की समस्याओं का समाधान ढूँढना भारतीय विचारक अपना पवित्र कर्त्तव्य मानते हैं। इस प्रकार, भारतीय दर्शन का दृष्टिकोण व्यावहारिक है।

2. भारतीय दर्शन की उत्पत्ति आध्यात्मिक असंतोष के कारण होती है- संसार में दुःख एवं बुराई का साम्राज्य पाकर भारतीय विचारक एक प्रकार के आध्यात्मिक असंतोष का अनुभव करते है और फलस्वरूप उनका दार्शनिक चिंतन आरंभ होता है। भारतीय विचारकों का प्रधान लक्ष्य मानव को दुःखों से मुक्त करना है। महात्मा बुद्ध ने अपने दर्शन में दुःख का विशद वर्णन किया है। इनके चार आर्यसत्य दुःख के विचार पर ही आधारित हैं- (i) दुःख है, (ii) दुःख का कारण है, (iii) दुःख निरोध संभव है और (iv) दुःख निरोध का मार्ग है। इसी तरह अन्य भारतीय दर्शन भी दुःख के भावों से ओत-प्रोत है। कुछ आलोचक भारतीय दर्शन में दुःखों का विशद वर्णन पाकर इसे निराशावादी कहते हैं। किन्तु यह आपेक्ष गलत है। भारतीय दर्शन का प्रारम्भ भले ही निराशावाद से होता हो, परन्तु इसका अन्त आशाबाद में होता है। इसलिए भारतीय दर्शन को निराशावादी नहीं कहा जा सकता।

3. संसार को एक नैतिक रंगमंच मानना- प्रायः सभी भारतीय दार्शनिक संसार को एक रंगमंच मानते हैं। मनुष्य अपने अतीत कर्म के अनुसार ईश्वर या प्रकृति की ओर से शरीर, इंद्रिय एवं वातावरण प्राप्त करके विश्वरूपी रंगमंच पर उपस्थित होता है, जिस प्रकार किसी रंगमंच पर पात्र विभिन्न वस्त्रों में सज-धजकर अपना पार्ट अदा करते हैं और उसके बाद रंगमंच से अलग हो जाते हैं, ठीक उसी प्रकार विश्वव्यापी मंच पर भी विभिन्न प्राणी अपने कर्मों का प्रभाव दिखाकर विदा हो जाते हैं। प्राणियों को अच्छे कर्मों द्वारा विश्व रंगमंच का सफल अभिनेता बनने का प्रयास करना चाहिए। जिस प्रकार साधारण रंगमंच पर पुराने पात्र स्थान खाली करते जाते हैं और नए पात्र उनके स्थान पर आते रहते हैं, उसी प्रकार विश्व भी एक ऐसा मंच है, जहाँ पुराने और नए चेहरे सदैव आते-जाते रहते हैं।

4. संसार की शाश्वत नैतिक व्यवस्था में विश्वास - संसार में एक शाश्वत नैतिक व्यवस्था का समर्थन प्रायः सभी भारतीय विचारक करते हैं। इस जगत में जो भी कर्म हम करते है, उसका फल हमें निश्चित रूप से मिलता है। अच्छे कर्मों के लिए पुरस्कार और बुरे कर्मों के लिए दंड का भागीदार हमें होना पड़ता है। यही कर्म-सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त के अनुसार हमारा वर्तमान जीवन हमारे अतीत जीवन का फल है, एवं भावी जीवन की आधारशिला हमारे वर्तमान जीवन कर्मों पर आधारित है। जिस प्रकार भौतिक जगत की व्यवस्था की व्याख्या कार्य-कारण नियम के आधार पर की जाती है, उसी प्रकार नैतिक जगत की व्यवस्था की व्याख्या कर्म- सिद्धान्त द्वारा ही संभव हैं। न्यायदर्शन के अनुसार कर्म-सिद्धान्त का  नियंत्रण ईश्वर द्वारा होता है। ईश्वर ही व्यक्ति को उसके कर्मानुसार सुख या दुःख प्रदान करता है। जैन, बौद्ध, सांख्य, मीमांसा आदि दर्शन कर्म-सिद्धान्त को ईश्वर के नियंत्रण से स्वतंत्र मानते हैं। फिर भी कर्म- सिद्धान्त का समर्थन संपूर्ण भारतीय दर्शन की ओर से किया गया है। यह सिद्धान्त आशावाद का संचार करता है।

5. आत्मा के आस्तित्व में विश्वास - चार्वाक और बौद्ध को छोड़कर संपूर्ण भारतीय दर्शन आत्मा की सत्ता में अखंड विश्वास रखता है। यहाँ आत्मा को शरीर से भिन्न एक आध्यात्मिक सत्ता कहा गया है। यह नित्य एवं अविनाशी है। भारतीय दार्शनिक तत्वज्ञान के लिए आत्मज्ञान को आवश्यक बताते हैं। शंकर ने तो आत्मज्ञान को ही ब्रह्मज्ञान माना है। इस प्रकार प्रायः संपूर्ण भारतीय दर्शन आत्मा को एक नित्य, अविनाशी, आध्यात्मिक सत्ता के रूप में स्वीकार करता है।

6. अज्ञान दुःख एवं बंधन को उत्पन्न करता है और ज्ञान से मोक्ष मिलता है-भारतीय दर्शन में अज्ञान को बंधन और दुःख का कारण बताया गया है। जन्म-मरण एवं पुर्नजन्म के चक्कर में पड़कर दुःख झेलना ही बंधन है। जन्म पुर्नजन्म के जाल से मुक्त हो जाना ही मोक्ष कहलाता है। प्रायः सभी भारतीय दार्शनिक अज्ञानता को दुःखों की जननी मानते हैं। बुद्ध ने अज्ञान को दुःखों का मूल कारण बताया है। शंकर के अनुसार भी व्यक्ति अज्ञानवश आत्मा और ईश्वर में द्वैत मानकर बंधनग्रस्त होता है। इन सभी विचारकों ने बंधन एवं दुःख दूर करने का प्रमुख साधन ज्ञान को बताया गया है।

7. आत्मनियंत्रण एवं एकाग्रचिंतन पर जोर - मानव को मोक्ष प्राप्त करने के लिए अपने मस्तिष्क से बुरे विचारों को निष्कासित करके उत्तम विचारों को प्रतिष्ठित करना एवं आत्मसंयम रखना भी अनिवार्य माना गया है। मस्तिष्क से दूषित भावनाओं को समूल नष्ट करने के लिए एकाग्रचिंतन आवश्यक है। इसके लिए प्रायः सभी भारतीय दर्शनों में 'योग' की महत्ता स्वीकार की गई है। बुरे विचारों से मुक्ति दिलाकर उत्तम विचारों को मस्तिष्क में भरने में योग महत्वपूर्ण कार्य करता है। एकाग्रचितंन के साथ-साथ आत्मसंयम भी मोक्ष के लिए आवश्यक माना गया हैं। इंद्रियों पर नियंत्रण रखकर ही हम वासनाओं, तृष्णाओं, राग-द्वेष एवं अन्य तुच्छ प्रवृत्तियों को अपने वश में रख सकते हैं। चार्वाक के सिवा अन्य भारतीय विचारकों ने आत्मनियंत्रण को अत्यधिक महत्वपूर्ण बताया है। आत्मसंयम पर अत्यधिक जोर देने के कारण कुछ आलोचक भारतीय दर्शन पर आत्मनिग्रह एवं सन्यास का आक्षेप लगाते हैं, किन्तु यह आक्षेप निराधार हैं।

8. जीवन का चरम लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति है - चार्वाक के अतिरिक्त संपूर्ण भारतीय दर्शन मोक्ष को ही जीवन का चरम लक्ष्य मानता है। दुःखरहित अवस्था को ही मोक्ष कहते हैं। कुछ अन्य विचारकों ने इसे आनंदमय अवस्था बताया है। इस प्रकार मोक्ष के दो पक्ष हैं।-

निषेधात्मक पक्ष और भावात्मक पक्ष। निषेधात्मक रूप से मोक्ष दुःखरहित अवस्था है और भावात्मक रूप से यह आनंदमयी अवस्था है। मोक्ष दो प्रकार के होते हैं जीवन्मुक्त और विदेहमुक्ति। शरीर धारण करते हुए इसी जीवन में मुक्त हो जाना जीवन्मुक्ति है। मृत्यु के बाद शरीर छोड़कर मुक्ति पाना ही 'विदेहमुक्ति' है। मोक्ष को निर्वाण कैवल्य आदि विभिन्न नामों से पुकारा जाता है। भारतीय दर्शन ज्ञान को मोक्ष का एक साधन मानता है। मोक्ष सर्वोच्च साध्य है। यह किसी अन्य साध्य का साधन नहीं हो सकता।

मोक्ष को सर्वोच्च साध्य मानने के कारण कुछ आलोचक यह आक्षेप करते हैं कि भारतीय दर्शन में व्यावहारिक पक्ष पर अत्यधिक जोर दिया गया है और सैद्धांतिक पक्ष की अवहेलना की गई है। यह आक्षेप निराधार है। भारतीय दर्शन एक ओर 'जीने का एक ढंग' या 'जीवन की एक पद्धति है तो दूसरी ओर इसमें तत्वमीमांसा, प्रमाणशास्त्र तर्कशास्त्र आदि विषयों का विशद विवेचन भी पाया जाता है। इस प्रकार भारतीय दर्शन के सैद्धांतिक और व्यावहारिक दोनों ही पक्ष काफी सबल हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
  2. प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
  3. प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
  4. प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
  5. प्रश्न- क्या भारतीय दर्शन जीवन जगत के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण अपनाता है? विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- क्या भारतीय दर्शन जीवन जगत के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण अपनाता है? विवेचना कीजिए।
  7. प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  8. प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  9. प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में भारतीय तथा पाश्चात्य दृष्टिकोणों की व्याख्या कीजिए।
  10. प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में भारतीय तथा पाश्चात्य दृष्टिकोणों की व्याख्या कीजिए।
  11. प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
  12. प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
  13. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  14. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  15. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  16. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
  18. प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
  19. प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
  20. प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
  21. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में तत्व सम्बन्धी बातों पर निबन्ध लिखिये।
  22. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में तत्व सम्बन्धी बातों पर निबन्ध लिखिये।
  23. प्रश्न- चार्वाक दर्शन के ईश्वर सम्बन्धी विचार दीजिए।
  24. प्रश्न- चार्वाक दर्शन के ईश्वर सम्बन्धी विचार दीजिए।
  25. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचारों का अर्थ बताइए तथा साधनों का वर्णन कीजिए।
  26. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचारों का अर्थ बताइए तथा साधनों का वर्णन कीजिए।
  27. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिये।
  28. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिये।
  29. प्रश्न- चार्वाक के भौतिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  30. प्रश्न- चार्वाक के भौतिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  31. प्रश्न- चार्वाक की तत्व मीमांसा का स्वरूप क्या है?
  32. प्रश्न- चार्वाक की तत्व मीमांसा का स्वरूप क्या है?
  33. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  34. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  35. प्रश्न- ईश्वर के अस्तित्व के लिए प्रमाणों की व्याख्या कीजिए।
  36. प्रश्न- चार्वाक दर्शन के प्रत्यक्ष प्रमाण की विवेचना कीजिए।
  37. प्रश्न- चार्वाक दर्शन के आत्मा सम्बन्धी विचार दीजिए।
  38. प्रश्न- सुख प्राप्ति ही जीवन का अन्तिम उद्देश्य है। बताइये।
  39. प्रश्न- चार्वाक के ज्ञान सिद्धांत की समीक्षात्मक व्याख्या कीजिए।
  40. प्रश्न- "चार्वाक की तत्वमीमांसा उसकी ज्ञान मीमांसा पर आधारित है।" विवेचना कीजिए।
  41. प्रश्न- जैन महावीर के जीवन वृत्त तथा शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- भारतीय संस्कृति में जैन धर्म के योगदान का वर्णन कीजिए।
  43. प्रश्न- जैन दर्शन में स्याद्वाद किसे कहते हैं?
  44. प्रश्न- जैन दर्शन के सात वाक्य भंगीनय लिखिए।
  45. प्रश्न- सात वाक्यों का आलोचनात्मक दृष्टिकोण से वर्णन कीजिए।
  46. प्रश्न- जैनों के बन्धन तथा मोक्ष सम्बन्धी सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  47. प्रश्न- जैन दर्शन के अनुसार द्रव्य का परिचय दीजिये।
  48. प्रश्न- द्रव्य के प्रकार बताइये।
  49. प्रश्न- द्रव्य को आकृति द्वारा स्पष्ट कीजिए।
  50. प्रश्न- जीव अथवा आत्मा किसे कहते हैं?
  51. प्रश्न- अजीव द्रव्य क्या है? व्याख्या कीजिए।
  52. प्रश्न- जैन दर्शन में जीव का स्वरूप क्या है?
  53. प्रश्न- जैन दर्शन के द्रव्य सिद्धान्त की समीक्षात्मक व्याख्या कीजिए।
  54. प्रश्न- जैन धर्म पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  55. प्रश्न- जैन धर्म के पतन के कारण स्पष्ट कीजिए।
  56. प्रश्न- जैन धर्म व बौद्ध धर्म में समानताओं और असमानताओं का तुलनात्मक परीक्षण कीजिए।
  57. प्रश्न- जैन धर्म की शिक्षाएँ क्या थीं?
  58. प्रश्न- पुद्गल किसे कहते हैं?
  59. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र और धर्म पर टिप्पणी लिखिए।
  60. प्रश्न- जैन धर्म के पाँच महाव्रत बताइए।
  61. प्रश्न- जैन धर्म के प्रमुख सम्प्रदाय बताइए।
  62. प्रश्न- जैन दर्शन का सामान्य स्वरूप बताइए।
  63. प्रश्न- सांख्य की 'प्रकृति' तथा वेदान्त की 'माया' के बीच सम्बन्ध की व्याख्या कीजिये।
  64. प्रश्न- गौतम बुद्ध के जीवन एवं उपदेशों का वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- बौद्ध धर्म के उत्थान व पतन के क्या कारण थे? समझाइये।
  66. प्रश्न- भारतीय संस्कृति में बौद्ध धर्म का योगदान बताइये।
  67. प्रश्न- बौद्ध दर्शन से क्या आशय है?
  68. प्रश्न- बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्यों की विवेचना कीजिए।
  69. प्रश्न- बुद्ध ने कौन से दुःख के कारणों के चक्र बताए? बौद्ध दर्शन के तृतीय आर्य सत्य की विवेचना कीजिये।
  70. प्रश्न- बौद्ध धर्म पर लेख प्रस्तुत कीजिए।
  71. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के चार सम्प्रदाय लिखिए।
  72. प्रश्न- क्षणिकवाद का सिद्धान्त क्या है?
  73. प्रश्न- बौद्ध धर्म के महत्त्वपूर्ण तथ्यों पर प्रकाश डालिए।
  74. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के अनुसार निर्वाण प्राप्ति के अष्टांगिक मार्ग की व्याख्या कीजिए।
  75. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में निर्वाण की व्याख्या कीजिये।
  76. प्रश्न- बौद्ध संगीतियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  77. प्रश्न- महाजनपदों के नाम लिखिए।
  78. प्रश्न- बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धान्त क्या हैं?
  79. प्रश्न- भारतीय संस्कृति को बौद्ध धर्म की क्या देन थी?
  80. प्रश्न- क्या बौद्ध दर्शन निराशावादी है?
  81. प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति की विशेषताएँ लिखिए।
  82. प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति के गुणों की व्याख्या कीजिए।
  83. प्रश्न- सत्, रज और तम गुण किसे कहते हैं?
  84. प्रश्न- प्रकृति के गुणों के क्या परिणाम होते हैं?
  85. प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार सत्कार्यवाद की व्याख्या कीजिए।
  86. प्रश्न- सांख्य दर्शन के तत्व सम्बन्धी विचार लिखिए।
  87. प्रश्न- प्रकृति तथा पुरुष का अर्थ तथा सम्बन्ध बताइए।
  88. प्रश्न- ज्ञानेन्द्रियों की व्याख्या कीजिए।
  89. प्रश्न- पुरुष के स्वरूप की व्याख्या कीजिए। पुरुष के अस्तित्व के लिए सांख्य द्वारा दिये गये तर्कों की विवेचना कीजिए।
  90. प्रश्न- सांख्य दर्शन की समीक्षा कीजिए।
  91. प्रश्न- सांख्य ज्ञानमीमांसा की विवेचना कीजिए।
  92. प्रश्न- सांख्य दर्शन के पुरुष की अनेकता की विवेचना कीजिए।
  93. प्रश्न- योग दर्शन से क्या तात्पर्य है? समझाइये।
  94. प्रश्न- पंतजलि ने योग सूत्रों को कितने भागों में बाँटा?
  95. प्रश्न- योग दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  96. प्रश्न- योग दर्शन के अभ्यास के अंग कौन-कौन से हैं?
  97. प्रश्न- योग दर्शन में तीन मार्ग कौन से हैं?
  98. प्रश्न- योग के अष्टांग साधन बताइए।
  99. प्रश्न- योगांग किसे कहते हैं?
  100. प्रश्न- योग दर्शन के पाँच नियमों की व्याख्या कीजिए।
  101. प्रश्न- योग' से आप क्या समझते हैं? योग साधना के विभिन्न सोपानों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  102. प्रश्न- योग दर्शन में ईश्वर के स्वरूप की विवेचना कीजिए।
  103. प्रश्न- योग दर्शन में ईश्वर के स्वरूप की विवेचना कीजिए तथा उसके अस्तित्व को सिद्ध करने सम्बन्धी प्रमाणों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  104. प्रश्न- वैराग्य क्या है? इसकी भेदों सहित व्याख्या कीजिए।
  105. प्रश्न- न्याय दर्शन से ईश्वर किन रूपों में कार्य करता है।
  106. प्रश्न- न्याय दर्शन में ईश्वर के अस्तित्व के प्रमाण लिखिए।
  107. प्रश्न- न्याय दर्शन की भूमिका प्रस्तुत कीजिए तथा न्यायशास्त्र का महत्त्व बताइये? तथा न्यायशास्त्र का प्रमाण शास्त्र का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- प्रमाण शास्त्र की व्याख्या कीजिए।
  109. प्रश्न- भारतीय तर्कशास्त्र में हेत्वाभास के प्रकार बताइए।
  110. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार अनुमान' के स्वरूप और प्रकारो की व्याख्या कीजिये।
  111. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार सोलह पदार्थों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  112. प्रश्न- प्रमा को परिभाषित करते हुए प्रमा के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  113. प्रश्न- प्रमा की परिभाषा दीजिए तथा उसके सामान्य लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
  114. प्रश्न- प्रमाण की परिभाषा देते हुए प्रमाण के प्रमुख प्रकारों का विवेचन कीजिए।
  115. प्रश्न- न्याय के आलोक में पदार्थ के विभिन्न प्रकारों का विवेचन कीजिए।
  116. प्रश्न- शब्द-प्रमाण में शब्द को स्वतन्त्र प्रमाण माना गया है विवेचन कीजिए।
  117. प्रश्न- उपमान प्रमाण के स्वरूप का विवेचन करते हुए इसकी परिभाषा दीजिए।
  118. प्रश्न- 'न्याय दर्शन' में 'अनुमान प्रमाण के स्वरूप की व्याख्या कीजिए एवं अनुमान प्रमाण के प्रकारान्तर भेदों का उल्लेख कीजिए।
  119. प्रश्न- अनुमान क्या है? परमार्थानुमान व स्मार्थानुमान को स्पष्ट कीजिए।
  120. प्रश्न- प्रत्यक्ष प्रमाण का स्वरूप क्या है?
  121. प्रश्न- न्यायदर्शन में निर्विकल्प प्रत्यक्ष का स्वरूप समझाइये।
  122. प्रश्न- न्यायदर्शन में उपमान प्रमाण का क्या स्वरूप है? न्याय दर्शन में उपमान प्रमाण का स्वरूप
  123. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में अनुमान प्रमाण का खंडन किस प्रकार करता है?
  124. प्रश्न- अनुमान प्रमाण में व्याप्ति की भूमिका समझाइये।
  125. प्रश्न- प्रमा और अप्रमा के भेद को स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- न्याय दर्शन में कितने प्रमाण स्वीकार किए गए हैं? सभी का वर्णन कीजिए।
  127. प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
  128. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों के नाम लिखिये।
  129. प्रश्न- वैशेषिक द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
  130. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में कितने गुण होते हैं?
  131. प्रश्न- कर्म किसे कहते हैं? व्याख्या कीजिए।
  132. प्रश्न- सामान्य की व्याख्या कीजिए।
  133. प्रश्न- विशेष किसे कहते हैं? लिखिए।
  134. प्रश्न- समवाय किसे कहते हैं?
  135. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में अभाव क्या है?
  136. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन क्या है? न्याय दर्शन और वैशेषिक दर्शन में आपस में क्या सम्बन्ध है? वैशेषिक दर्शन में सात प्रकार के पदार्थ बताइए।
  137. प्रश्न- व्याप्ति क्या है? व्याप्ति की स्थापना किस प्रकार होती है?
  138. प्रश्न- 'गुण' और 'कर्म' पदार्थों की विवेचना कीजिए।
  139. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन की समीक्षा कीजिए।
  140. प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन के स्वरूप पर प्रकाश डालिए?
  141. प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन में अनुमान का क्या स्वरूप है?
  142. प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
  143. प्रश्न- संयोग और समवाय पर टिप्पणी लिखिए।
  144. प्रश्न- मीमांसा से क्या तात्पर्य है इसे भली-भाँति समझाइये।
  145. प्रश्न- पूर्व मीमांसा किसे कहते हैं?
  146. प्रश्न- द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
  147. प्रश्न- मीमांसा दर्शन में ज्ञान के कितने साधन माने गये हैं?
  148. प्रश्न- उपमान किसे कहते हैं?
  149. प्रश्न- अर्थापत्ति किसे कहते हैं?
  150. प्रश्न- अनुपलब्धि या अभाव किसे कहते हैं?
  151. प्रश्न- मीमांसा के तत्व विचार की व्याख्या कीजिए।
  152. प्रश्न- मीमांसकों ने 'आत्मा' का क्या स्वरूप बतलाया है?
  153. प्रश्न- शंकराचार्य ने ब्रह्म के कितने स्वरूपों की व्याख्या की है?
  154. प्रश्न- ब्रह्म और माया क्या है?
  155. प्रश्न- ब्रह्म और जीव क्या हैं?
  156. प्रश्न- माया में कितनी शक्तियों का समावेश है?
  157. प्रश्न- "ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या" शंकर के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं? शंकर के ब्रह्म और जगत सम्बन्धी विचारों के सन्दर्भ में विवेचना कीजिए।
  158. प्रश्न- अद्वैत दर्शन में जीव के बंधन और मोक्ष पर एक निबन्ध लिखिए।
  159. प्रश्न- प्रभाकर मत में अख्यातिवाद क्या है? और यह किस प्रकार भट्ट मत के विपरीत ख्यातिवाद से भिन्न है? स्पष्ट कीजिए।
  160. प्रश्न- शंकर का अद्वैत वेदान्त क्या है?
  161. प्रश्न- अद्वैत वेदान्त में निर्गुण ब्रह्म और सगुण ब्रह्म में क्या भेद बताया गया है? विवेचना कीजिए।
  162. प्रश्न- शंकर के 'ईश्वर' विचार की व्याख्या कीजिये।
  163. प्रश्न- जीव किसे कहते हैं?
  164. प्रश्न- शंकर के अद्वैतवाद तथा रामानुज के विशिष्ट द्वैतवाद में अन्तर बताइए।
  165. प्रश्न- वेदान्त दर्शन किसे कहते हैं? शंकर के वेदान्त दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  166. प्रश्न- क्या विश्व शंकर के अनुसार वास्तविक है? विवेचना कीजिए।
  167. प्रश्न- रामानुज शंकर के मायावाद का किस प्रकार खण्डन करते हैं?
  168. प्रश्न- शंकर की ज्ञान मीमांसा का वर्णन कीजिए।
  169. प्रश्न- शंकर के ईश्वर विचार की व्याख्या कीजिए।
  170. प्रश्न- माया क्या है? माया सिद्धान्त की रामानुज द्वारा दी गई आलोचना का विवरण दीजिए।
  171. प्रश्न- रामानुज के विशिष्टाद्वैत वेदान्त से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  172. प्रश्न- रामानुज के अनुसार ब्रह्म क्या है? ईश्वर व ब्रह्म में भेद बताइए।
  173. प्रश्न- रामानुज के अनुसार मोक्ष व उनके साधनों का वर्णन कीजिए।
  174. प्रश्न- जीवात्मा के भेदों को स्पष्ट कीजिए।
  175. प्रश्न- रामानुज के अनुसार ज्ञान के साधन क्या हैं?
  176. प्रश्न- रामानुज के 'जीव सम्बन्धी विचार की व्याख्या कीजिये।
  177. प्रश्न- रामानुज के जगत की व्याख्या कीजिए।
  178. प्रश्न- विशिष्ट द्वैत दर्शन की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  179. प्रश्न- चित् व अचित् तत्व क्या हैं?
  180. प्रश्न- बन्धन और मोक्ष क्या है?
  181. प्रश्न- चित्त क्या है?

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